Chairman Message : Dr Bharat Sharan Singh

''अध्यक्ष का संदेश''

Transforming Teachers, Transform India

‘शिक्षक के परिवर्तन से भारत का परिवर्तन’

शिक्षक बदलेगा भारत बदलेगा


Dr. Bharat Sharan Singh

 भारत वर्षों पश्चात शिक्षा से विद्या की अपनी प्राचीन ज्ञान परम्परा की नींव पर सवार होकर सुन्दर समन्वय के साथ यात्रा करने को उद्यत्त है । परम्परा मानती है की विद्यार्थी-शिक्षक, शिक्षण-विषय के मध्य एक सम्बन्ध है, जो विद्यार्थी को अपनी अंतर्निहित शक्तियों के विकास में सहायक होता है । शिक्षक ही विद्यार्थी को उसके अंतर की क्षमता के उन्नयन के लिए उत्प्रेरित करता है, उसका पथ प्रदर्शन करता है, शिक्षक और उसका दिया शिक्षण ही विद्यार्थी को अपने भावी जीवन में आने वाली चुनौतिओं  का सफलतापूर्वक सामना करने के योग्य बनाता है, शिक्षण और प्रशिक्षण से ही विद्यार्थी के व्यक्तित्व  का सर्वांगपूर्ण विकास होता है और उसे समाज एवं राष्ट्र के उन्नति में अपन सृजनात्मक योगदान करने के लिए सक्षम बनाता है।

            वर्तमान परिदृश्य में शिक्षक, आचार्य, प्राध्यापक जैसे शब्दों ने प्राचीन शब्द ‘गुरु' को शिक्षा से जैसे पदच्युत कर दिया हो ।  शिक्षक, आचार्य, प्राध्यापक का अर्थ उस भारतीय गुरु परम्परा से कट सा गया है, जिसे ‘गुरु' की उपाधि दी जाती है। जिसके कारण शिक्षक और विद्यार्थी के बीच का गुरुत्व (लगाव,खिचाव, आकर्षण, आत्मीयता ) ख़त्म सा हो गया है ।   इसी तरह शिक्षण को भी विद्या से पृथक कर जीविकोपार्जन के लिए अर्जित किया जाने वाला ज्ञान आर्थत जानकारियों का भण्डार बना दिया गया । ‘गुरु' जो भौतिक और अध्यात्मिक दोनों जीवन को संवारता है, वह पश्चिम की छाया में  शिक्षक की भूमिका से पृथक हो गया है ।  इसलिए आवश्यक है शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए  व्यवस्थित शिक्षाक्रम तथा मनोवैज्ञानिक शिक्षण - सिद्धान्तों पर आधारित उपयुक्त शिक्षण -पद्धति अपनाने की । शिक्षण पद्धति में अंतर पाठ्यवस्तु की प्रकृति एवं विद्यार्थी के स्तर पर निभर है।  शिक्षण -पद्धति  शिक्षा -दर्शन एवं  सिद्धान्तों के क्रियान्वयन का चरण है  ।    

            भारतीय ज्ञान परम्परा में ऋषियों की महत्वपूर्ण भूमिका है । इसी ऋषि परम्परा में  गुरु-शिष्य परम्परा का विकास हुआ । ‘गुरु'  के बारे में कहा गया है- ‘गिरति अविद्या अंधकारं इति, गुरु ।' जो अंधकार को दूर करे वह ‘गुरु' है। गुरु कोई व्यक्ति नहीं, कोई शरीर नहीं गुरु एक शक्ति एवं तत्व है । गुरु एक भाव है, गुरु श्रद्धा है, गुरु विश्वाश है, गुरु समर्पण है । भारतीय जीवन प्रणाली में शिक्षक अथवा गुरु को परमेश्वर के समकक्ष माना गया है । समकक्ष ही नहीं तो कई जगह ईश्वर ही माना गया है । वह एक ऐसा अध्यात्मिक व्यक्तित्व है जो  अपने आत्मा के प्रकाश से विद्यार्थी अर्थात अपने शिष्य के अंतः करण को उसी प्रकार आलोकित करता है जैसे एक दीप से दूसरा दीप आलोकित होता है  । इसीलिए भारतीय शिक्षा के इतिहास में शिक्षक के पद को गौरवान्वित करने वाले महान तपस्वी ऋषियों की परम्परा को सम्मान देने सम्राट भे अपना सिहासन छोड़कर खड़े हो जाते थे।  

            कब कौन कैसे किसी के लिये ‘गुरु' साबित हो यह व्यक्ति की दृष्टि एवं मनोभाव पर निर्भर करता है। भृंग -कीट -न्याय में जैसे भंवरा एक विशेष प्रकार के कीट को लाकर मिटटी के छोटे से घरोदे में बंद कर देता है, फिर उसका चक्कर कटता रहता है, कुछ दिन बाद वह कीट भी भंवरा ही बन जाता है, उसी प्रकार यदि शिष्य गुरु के आचार का अनुसरण करता रहता है तो वैसा ही बन जाता है।    बालक नरेन्द्र को ‘गुरु' के रूप में रामकृष्ण परमहंस मिलते हैं , जो उसके सम्पूर्ण जीवन को परिवर्तित कर स्वामी विवेकानंद बनाते देते  हैं , जो भारत की  श्रेष्ठता को वैश्विक मंच पर ले जाकर पुनर प्रतिष्ठित करते हैं ।

            एक  मछली पकड़ने वाले का बालक अब्दुल को  डॉ. विक्रम साराभाई एवं डॉ ब्रम्ह प्रकाश मिलते हैं, जो कलाम को परिवर्तित कर डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम बनते हैं,  जो भारत की प्राचीन विज्ञान परम्परा के प्रति गौरव का बोध जागृत कर उसको ब्रह्माण्ड की  ऊंचाईयों तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं । किन्तु अपने शिक्षकीय जीवन का विस्मरण नहीं करते ।  

            भीमराव सकपाल के पीछे शिक्षक के रूप में कृष्णा जी केशव रहते हैं , जो उस बालक को डॉ भीमराव आंबेडकर बनाते हैं । विष्णु गुप्त परिवर्तित होता है और चाणक्य बनता है, और चाणक्य सड़क पर खेलने वाले एक बालक को चन्द्रगुप्त जैसा सम्राट बनाता है, और पाटलिपुत्र को घनानंद के अत्याचारों से मुक्त कराकर भारत की व्यवस्था को  परिवर्तित करता है।‘ गुरु' की महिमा अनंत है । तात्पर्य यह की जब हम ‘गुरुप्त' (गुरु तत्व) के रूप में शिक्षक की भूमिका पर बात करतें है तो स्पष्ट है की यह मान कर चलते है की  शिक्षक के परिवर्तन से ही भारत का परिवर्तित होगा।  (ट्रांस्फोर्मिंग टीचर, ट्रांस्फोर्मिंग इंडिया।) परिवर्तन की इस श्रृंखला में शिक्षक एक महत्वपूर्ण  कड़ी है ।

            राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षक शिक्षा पर विशेष जोर दिया गया है। आने वाले समय में एक बडा लक्ष्य लेकर इस ऊँचाई को प्राप्त करने की आवश्यकता है । देश के बारे में कहा जाता है देश नदी और तालाबों से नहीं बनता, देश पर्वत और  पहाड़ों से भी नहीं बनता, देश लाखों के जन्म लेने और मर जाने से भी नहीं बनता है, देश बनता है समाज के सामान्य युवक एवं युवतियों के श्रेष्ठ प्रतिमानों से। इसलिए युवाओं को सकारात्मक दृष्टि से प्रेरित कर परिवर्तित करने का उत्तरदायित्व शिक्षक पर होता है। शिक्षक अकेला नहीं होता।  शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों का एक बडा समूह जुड़ा रहता है। और इस समूह को राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत करने की जबाबदारी शिक्षकों के ऊपर ही होती है, क्योंकि विद्यार्थी माता-पिता के बाद अधिकाँश समय शिक्षकों के मध्य ही व्यतीत करता है।

            एक उक्ति है  ‘जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि'।  एक बड़े क्षेत्र में निर्माण कार्य चल रहा था स्थान-स्थान पर श्रमिक काम कर रहे थे। कुछ लोग वहां  से गुजर रहे थे, गुजरने वालों के मन में जिज्ञासा हुई कि पता किया जाये यहां क्या निर्माण किया जा रहा है ? ‘‘एक से पूछा भाई ये क्या कर रहे हैं ? श्रमिक ने उत्तर दिया, "देख नहीं रहे मजदूरी कर रहे हैं ।" यात्री आगे बढ़  गये, संतोषजनक उत्तर ना मिलने पर फिर से पूछा गया, क्या कर रहे हो ? उत्तर मिला दीवार का निर्माण कर रहे हैं , फिर संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, आगे बढ़ गये। फिर  तीसरे से पूछा गया क्या कर रहे हो ? श्रमिक ने उत्तर दिया, जो बड़ा महत्वपूर्ण था, ‘यहाँ पर एक भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है उसी के निर्माण में अपना योगदान दे रहा हूँ ।‘ तीनों  श्रमिक वही कार्य कर रहे थे,  किन्तु सब की दृष्टि अलग-अलग थी, इसलिये कहा गया है, ‘जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।' शिक्षक की इस दृष्टि को आज निर्माण करने की आवश्यकता है जिससे वह विद्यार्थी की दृष्टि को बदल सके। शिक्षा नीटी में इसे शिक्षण प्रशिक्षण कहा गया है ।कहा गया है -

यद्यदाचरति श्रेष्ठ्स्तत्तादेवेतारो जन: ।

                                  स यत्प्रमाणं कुरुते  लोक्स्तद्नुवर्तते । ।  (गीता अध्याय 3, श्लोक 20)

 

महान व्यक्ति जो कार्य करते है, आम लोग अनुसरण करते है | वे जो भी मानक तय करते है, सारी दुनिया उसका अनुसरण करती है |

            इस प्रकार हमारा उत्तरदायित्व है कि हम ऐसे युवा तैयार करें जो समाज देश एवं विश्व का मार्गदर्शन करने की योग्यता रखें । यह सब करते हुये यह भी ध्यान रखना है, जहाँ राम की मर्यादा के बारे में बताना है, वही कृष्ण की नीतियों को भी नहीं भूलना है । जहां महर्षि वाल्मीकी के बारे में बताना है वहां विश्वामित्र को भी नहीं भूलना है । यह समय की आवश्यकता है । और सबसे महत्वपूर्ण बात जो केवल शिक्षक के लिए ही होती है - Once a teacher always teacher. जो आज सेवा में हैं,शिक्षक है, सेवा के बाद भी शिक्षक ही रहेंगे । शिक्षण कार्य में आयु बाधक नहीं होती । भारत के प्रथम अभियंता विश्वेश्वरय्या का सुदीर्घ जीवन 102 वर्ष  का  था । 100 वर्ष की अवस्था में अस्वस्थ होने पर हास्पिटल में भर्ती हुये, तो वह अपने परिजनों से कुछ पुस्तक लेकर आने के लिये कहा ।  परिजनों के पूछने पर की ‘पुस्तकों का क्या करेंगे ?  उन्होंने उत्तर दिया समय का सद उपयोग एवं ज्ञान की वृद्धि करेंगे । उक्त सभी महापुरुषों को स्मरण करने का तात्पर्य यह की उनके जीवन के प्रसंग हम सभी के लिये प्रेरणादायी है, तो हैं ही हमारी अपनी भूमिका समझाने का  अवसर भी देते हैं ,तय हमें करना है ।    

            प्रो. भरत शरण सिंह
                 अध्यक्ष 
म.प्र. निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग, भोपाल